लगभग ढाई सौ की आबादी वाले इस गांव में आजादी के बाद से दीपावली के दिन नहीं जलाए दिए. दीवाली के मौके बहुत पहले एक अनहोनी हो गई थी. 

गांव का एक नौजवान इसी त्योहार वाले दिन चल बसा. तभी से यहां दीवाली के मौके पर मातम छाया रहता है.

उत्तर प्रदेश के गोंडा के वजीरगंज विकास खंड की ग्राम पंचायत डुमरियाडीह के यादवपुरवा में दीपावली का पर्व नहीं मनाया जाता है. 

दीवाली के दिन एक नौजवान की मौत हो गई थी, उसी के बाद से गांव के लोगों में अनहोनी के डर का असर आज भी है. अब यह परम्परा बन गयी है जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी लोग मानते चले आ रहे है। 

इस गांव में 20 घर हैं. इसमें कुल मिलाकर 250 लोग रहते हैं. इस त्योहार वाले दिन सभी लोग घर मे ही रहते हैं. न कोई पकवान बनता है, न ही कोई उल्लास होता है. 

एक दो बार नई बहुओं ने इस परंपरा को तोड़ने का प्रयास किया, तो इसका खमियाजा भी भुगतना पड़ा। 

कई लोग बीमार हो गए बच्चे भी काफी दिक्कत में पड़ गए. कई लोग अस्पताल के चक्कर ही लगाते रहे. 

इसके बाद से एक बात और ठानी गई कि भले कुछ हो जाये, मगर दीवाली वाले दिन इसे नहीं मनाया जाएगा. भले ही उसके दूसरे दिन बच्चे अपना पटाखे आदि जला लें. लेकिन उस दिन नहीं करते हैं.

त्योहार न मनाने का दु:ख तो रहता है, अगल बगल के लोग दीवाली मनाते हैं. लेकिन इस गांव में पीढ़ी दर पीढ़ी यह प्रथा कायम रखने में यहां के लोग वचनवद्ध है.

गांव के लोगों को शुभ दिन का है इंतजार कि दीवाली के दिन गांव में कोई बेटा पैदा हो जाये या फिर गाय के बछड़ा पैदा हो जाये तभी हो सकती है इस पर्व की शुरूआत। 

दीपावली वाले दिन इस गांव में न तो पटाखों की गूंज होती है और न ही दीपमाला न ही मिठाई बांटने का कोई रिवाज। सामान्य दिनों की तरह ही यहां रात को सन्नाटा होता है.

बुजुर्गों ने समुदाय की भावी पीढ़ी को भविष्य में दीवाली न मनाने के लिए मना किया है। और कहा कि यदि ऐसा न किया तो यहां के लोग फिर से इस चपेट में आ जाएंग. 

बुजुर्गों को दिए गए वचन की आन का पालन नई पीढ़ी निभाते आ रहे हैं. यहां की युवा पीढ़ी अनुशासन से अपने बुजुर्गों का सम्मान रख रहे है. 

बस ऐसे ही ऐसे ही दीवाली के दिन यहां सन्नाटा पसरा रहता है। जो पीढ़ियों से चला आ रहा है।